न्यूरोकागनिटिव बैटरी से पांच भाषा में होगी डिमेंशिया की जांच
| 1/5/2020 7:04:12 PM

Editor :- Mini

नई दिल्ली,
डिमेंशिया की बीमारी के बढ़ते आंकड़ों को देखते हुए आईसीएमआर ने एक बेहतरीन उपकरण का मॉडल तैयार किया है। न्यूकानिटिव टेस्ट बैटरी की सहायता से पांच भाषाओं के मरीजों की डिमेंशिया की जांच हो सकेगी। आसान, सर्वसुलभ, सस्ती और बेहतर चिकित्सीय तकनीक को लांच करने की श्रेणी में न्यूरोकागनिटिव बैटरी को बेहद अहम माना जा रहा है, जिसे मध्यम और निम्न आयवर्ग के मरीजों के लिए भी प्रयोग किया जा सकेगा। बैटरी के सफल प्रयोग के अध्ययन अध्ययन जर्नल ऑफ इंटरनेशनल न्यूरोसाइक्रेट्रिक सोसाइटी में प्रकाशित किया गया है।
देश में डिमेंशिया की समस्या तेजी से बढ़ रही है, लगभग सभी आय वर्ग में इस बीमारी का असर देखा जा रहा है, लेकिन समस्या यह है कि बीमारी के पहचान के टूल्स सर्व सुलभ नहीं है, इसी बात को ध्यान में रखते हुए आईसीएमआर, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान संस्थान ने अध्ययन के लिए एक टीम तैयार की। इसमें इस बात को महत्व दिया गया है कि उपकरण ऐसा तैयार किया जाएं जो हर वर्ग, उम्र, शिक्षित अशिक्षित, हिंदी भाषाी और गैर हिंदी भाषाी मरीजों के लिए भी उपयोगी हो। गहन शोध के बाद एक्सपर्ट की टीम ने आईसीएमआर एनसीटीबी (न्यूरोकागनिटिव टेस्ट बैटरी) लांच, जिसकी सहायाता से हिन्दी, बंगाली, तेलगू, कन्नड़ और मलयालयम भाषा के मरीजों में भी डिमेंशिया की पहचान हो सकती है। डिमेंशिया की पहचान मरीज के व्यवहार बोलचाल और गतिविधियों के आंकलन के बाद की जाती है। डिमेंशिया एक तरह के भूलने की बीमारी है जिसे डिजेनेरेटिव डिसीस माना जाता है, एक अनुमान के अनुसार भारत में पचास में 20 बुजूर्ग डिमेंशिया के मरीज हैं, जिन्हें तुरंत पहचान और इलाज चाहिए होता है।
क्या है डिमेन्शिया
उम्र बढ़ने के साथ ही मस्तिष्क के सोचने की क्रियाशीलता प्रभावित होती रहती है। तनाव व दिल की बीमारियों के साथ बुढ़ापे की शुरूआत होती है तो भूलने की बीमारी की संभावना 40 फीसदी देखी गई है। बीमारी के शुरूआती लक्षण रात में नींद का कम आना व बार-बार पेशाब आना हैं। 55 फीसदी मामलों में डिमेन्शिया अलझाइमर में बदल जाता है, जिसमें मरीज के साथ एक व्यक्ति का नियमित रूप से रहना जरूरी हो जाता है। 5 प्रतिशत मामले में बीमारी को जेनेटिक माना गया है।

क्या हैं प्रमुख सुझाव
-दवाओं के अलावा पारिवारिक माहौल भी जरूरी
-काउंसलिंग केन्द्र के जरिए बुजूर्गो के एकांतपन को दूर करें
-पीएचसी व सीएचसी पर प्रशिक्षित स्वयंसेवी कार्यकताओं की हो नियुक्ति
-बीमारी के लक्षण व एहतियात का हो अधिक से अधिक प्रचार


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