तीन अरब लोगों के पास नहीं है हाथ धोने के लिए पानी एवं साबुन
| 3/27/2020 5:15:37 PM

Editor :- Mini

नई दिल्ली,
कोविड-19 से लड़ाई में साबुन से हाथ धोना बेहद महत्वपूर्ण है, पर सच्चाई यह भी है कि दुनियां की 40 प्रतिशत आबादी या कहें तो लगभग तीन अरब लोगों के पास घर पर हाथ धोने के लिए पानी एवं साबुन की सुविधा उपलब्ध नहीं है।
यूनिसेफ ने इस बावत अपनी चिंता जाहिर की है। यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरिटा फोर ने जारी एक वक्तव्य में कहा कि चालीस प्रतिशत आबादी तक पानी एवं साफ-सफाई संबंधी सेवाओं तक उनकी पहुंच न होने के बारे में भी हम चिंतित हैं। जैसा कि आपको विदित ही है कि इससे भी बुरी स्थिति तो यह है कि 16 प्रतिशत स्वास्थ्य केंद्रों में यानी 6 में से 1 में साफ-सफाई की सुविधाएं नहीं हैं। पूरी दुनियां के एक-तिहाई विद्यालयों में एवं कम-विकसित देशों के आधे विद्यालयों में बच्चों के लिए हाथ धोने की कोई जगह ही नहीं है।
उन्होंने कहा कि कुछ ही महीनों में कोविड-19 संक्रमण ने पूरे विश्व में बच्चों की जिंदगी को उलट पलट कर रख दिया है। करोड़ों बच्चे आज विद्यालयों में नहीं हैं। माता-पिता एवं देखभाल करने वालों की नौकरियां चली गई हैं। देशों की सीमाएं बंद कर दी गई है, हम बच्चों की शिक्षा के बारे में चिंतित हैं। कम-से-कम 120 देशों में राष्ट्रव्यापी स्तर पर विद्यालय बंद हैं, जिससे दुनियां के आधे से ज्यादा विद्यार्थी प्रभावित हुए हैं। यह बंदी केवल पढ़ाई तक ही सीमित नहीं है अपितु इससे विद्यालय से मिलने वाले पोषक भोजन, स्वास्थ्य कार्यक्रम, स्वच्छ पानी तथा सटीक सूचना पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।
इस लिए यूनिसेफ पूरी दुनियां के शिक्षा मंत्रियों के साथ मिलकर पढ़ाई की वैकल्पिक संभावनाओं की तलाश कर रहा है, इनमें पढ़ाई की ऑनलाइन कक्षाएं या रेडियो एवं टेलिविजन के माध्यम से चलने वाले कार्यक्रम शामिल हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रेड क्रास एंड रेड क्रीसेंट सोसाइटीज़ (आईएफआरसी) के साथ मिलकर हमने माता-पिता, शिक्षकों, विद्यालयों के प्रशासकों तथा अन्य के लिए इस पर दिशानिर्देश जारी किए हैं कि बच्चों को सुरक्षित रखते हुए उनकी पढ़ाई को कैसे जारी रखा जाए।
यूनिसेफ ने कहा कि हम बच्चों की सुरक्षा के बारे में भी चिंतित हैं। स्वास्थ्य संबंधी पिछली आपात स्थितियों से हमें ज्ञात है कि जब विद्यालय बंद होते हैं, नौकरियां चली जाती हैं तथा आवाजाही पर प्रतिबंध लग जाते हैं तब बच्चों पर शोषण, हिंसा तथा दुव्र्यवहार के जोखिम बढ़ जाते हैं।
उदाहरण के लिए, 2014 से 2016 तक पश्चिमी अफ्रीका में फैले ईबोला के दौरान बाल श्रम, उपेक्षा, यौन दुराचार तथा गर्भवती किशोरियों की संख्या में बढ़ोतरी देखने को मिली थी।
हम टीकाकरण तथा बचपन की बीमारियों के उपचार सहित बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं तक उनकी पहुंच के बारे में भी चिंतित हैं। हम कोविड-19 से किसी बच्चे को नहीं बचा सकते हैं, और निमोनिया, खसरा तथा हैजे से भी कई जिंदगियों को खो सकते हैं।
हम उनके मानसिक स्वास्थ्य के बारे भी चिंतित हैं। बच्चे तथा युवा अपने यौवन के कुछ बेहतरीन पल इस बीमारी के चलते खो रहे हैं, इन पलों में दोस्तों से गपशप, कक्षाओं में भाग लेना तथा खेलों का लुत्फ उठाना शामिल है। इससे उत्तेजना बढ़ती है तथा व्यवहार में बदलाव आ सकता है। हमने माता-पिता, शिक्षकों तथा बच्चों एवं युवाओं के लिए दिशानिर्देश दिए हैं जिससे कि वे इस चुनौतीपूर्ण समय के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकें।अवसाद तथा मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिताएं वास्तविक हैं तथा ये हममें तीन में से एक को प्रभावित कर रही हैं।
हम उन लाखों बच्चों के लिए विशेष रूप से चिंतित हैं जो या तो विस्थापित हैं या हिंसाग्रस्त स्थानों में जीवनयापन कर रहे हैं। उनके लिए इस महामारी के परिणाम ऐसे हो सकते हैं जिनके बारे में हमने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। ये बच्चे भीड़-भाड़ वाली स्थितियों में रहते हैं, अक्सर ये उन स्थानों में भी होते हैं जहां युद्ध चल रहे होते हैं, जहां पर स्वास्थ्य के देखभाल की कोई व्यवस्था नहीं होती है। छह, आठ, दस या 12 सदस्यों वाला परिवार एक ही कमरे में रहता है। ऐसी स्थिति में स्वयं अलग-थलग रहना एवं साबुन से हाथ धोना आसान नहीं है।
इसीलिए कोविड-19 महामारी के प्रति संयुक्त राष्ट्र संघ की वैश्विक लोकोपकारी योजना को वित्तपोषण देना आवश्यक है।

अकेले यूनिसेफ आपदाग्रस्त देशों में अपने कार्यक्रमों के लिए 405 मिलियन अमेरिकी डॉलर देने की अपील कर रहा है। गैर-आपदाग्रस्त देशों में अपनी योजनाओं के लिए हम 246.6 मिलियन अमेरिकी डॉलर की अतिरिक्त मांग भी कर रहे हैं। इस तरह हमारी कुल अपील 651.6 मिलियन अमेरिकी डॉलर की है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मिलने वाली सहायता से हम एक साथ मिलकर कमजोर स्वास्थ्य प्रणाली वाले देशों में तैयारी एवं जवाबी योजना को मजबूती दे सकते हैं।
हम हाथ धोने एवं सफाई सेवाओं तक पहुंच को भी सुदृढ़ बना सकते हैं।

हम समुदायों से अपने संपर्क बढ़ा सकते हैं जिससे यदि उन्हें संसर्ग से बचने की आवश्यकता हो तो अपेक्षित सूचना उन्हें दी जा सके।

हम गाउन, मास्क, चश्में तथा दस्तानों जैसे व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित कर सकते हैं ताकि अपनी आवश्यक वस्तुओं, परिश्रमी स्वास्थ्यकर्मियों को सुरक्षित रखते हुए संक्रमण की रोकथाम में सहायता की जा सके।
और साथ ही साथ सरकारों के साथ कार्य करते हुए सुरक्षा सेवाओं, मनोवैज्ञानिक सहायता को सुदृढ़ बना सकते हैं तथा सभी बच्चों, विशेषत: अत्यधिक संकटग्रस्त बच्चे, को दूरस्थ शिक्षा के अवसर उपलब्ध करा सकते हैं।


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